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करनाल के डॉ मंगलसेन ऑडिटोरियम में किसान ज्ञानशाला का  हुआ आयोजन।

सिक्किम और गुजरात के बाद अब हरियाणा बनेगा प्राकृतिक खेती का मॉडल, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने करनाल में किसानों की पाठशाला लगाई और किसानों को प्रकृतिक खेती का मंत्र दिया। 

विश्व के अन्य देशों की भांति भारत के लोगों ने भी पिछले कई सालों से पाश्चात्य अंधानुकरण के चलते न केवल अपने जीवन को बल्कि कृषि को भी अंधकारमय बना दिया है। इस मशीनी युग में खाद्यान्न पदार्थों को उगाने के लिए प्रयोग हो रही रासायनिक खाद और कीटनाशकों से खाद्य सामग्री भी जहरीली होने लगी है। खेती को इसी जहर से मुक्त करने और किसानों को प्रकृतिक खेती का मंत्र देने के लिए आज करनाल के डॉ मंगलसेन ऑडिटोरियम में किसान ज्ञानशाला का आयोजन किया गया। इसमें प्राकृतिक खेती की मुहिम चला रहे गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। उन्होंने दीप जलाकर किसान ज्ञानशाला का शुभारंभ किया। 
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आज किसानों की पाठशाला में गुरुजी बनकर उन्हें प्रकृतिक खेती का मंत्र दिया। किसान ज्ञानशाला को संबोधित करते हुए उन्होंने गोबर धन से धरती माता का संवर्धन करने का आह्वान किया। राज्यपाल ने कहा कि जैविक खेती और प्राकृतिक खेती में जमीन आसमान का फर्क है। कृषि वैज्ञानिक भी इस के अंतर को अधिकतर नही समझ पा रहे है। प्राकृतिक खेती से पर्यावरण एवं ऐसे सूक्ष्म कीटाणुओं की रक्षा होती है जो मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज़रूरी होते हैं। 

उन्होंने कहा कि आज गुजरात मे दस लाख किसान इसकी खेती करते है। में खुद अपने गुरुकुल में 80 एकड़ में प्राकृतिक खेती करता हूँ। 

हमारे देश के विज़नरी लीडर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में बैक टू बेसिक के मंत्र के साथ ज़ीरो बजटीय प्राकृतिक खेती को गति दी है। राज्यपाल ने विश्वास व्यक्त किया कि प्राकृतिक खेती से सम्बद्ध सभी समस्याओं का निवारण होने पर शत प्रतिशत किसान प्राकृतिक खेती को अपनाएंगे।
गौ पालन व देशी नस्ल की गायों को अपनाने एवं गोबर एवं गोमूत्र से प्राकृतिक खेती के उनके अभियान के भी अनूठे परिणाम सामने आये हैं। क्योंकि केवल देसी गाय पर आधारित इस प्राकृतिक खेती को करने में कोई लागत नहीं आती है। किसान गाय के गोबर और मूत्र से ही खेत के लिए जरूरी पोषक तत्वों की जरूरत को पूरा करता है। उन्होंने कहा कि देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 करोड़ जीवाणु होते है। वहीं गाय के गोबर और मूत्र में लस्सी व गुड़ आदि मिलाकर किसान खेत में ही प्राकृतिक कीटनाशक भी तैयार कर सकता है। दूसरा, जैविक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती काफी सरल और फायदेमंद है क्योंकि एक देसी गाय से लगभग 30 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा सकती है। जबकि जैविक खेती के लिए एक एकड़ क्षेत्र में करीब 20 पशुओं के गोबर की जरूरत पड़ती है। 

उन्होंने कहा कि शून्य लागत प्राकृतिक खेती छोटे और सीमांत किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि वर्तमान में खेती के लिए रसायनों आदि की भारी कीमत चुकाने के लिए किसानों को कर्ज का सहारा लेना पड़ता है और कर्ज का यह बोझ बढ़ता ही जाता है। आचार्य देवव्रत ने कहा कि किसान रासायनिक खाद, कीटनाशक और पेस्टीसाइड के प्रयोग से न केवल कर्ज में डूब रहा है बल्कि खेतों में जहर की खेती कर रहे हैं। अनाज सब्जियों के माध्यम से यही जहर हमारे शरीर में जाता है। जिससे आज कैंसर, हार्ट अटैक, रक्तचाप जैसी गंभीर बीमारियां लगातार फैल रही हैं। यदि हमें अपने परिवार और समाज को स्वस्थ रखना है तो हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा। गाय से प्राप्त सप्ताह भर के गोबर एवं गौमूत्र से निर्मित घोल का खेत में छिड़काव खाद का काम करता है और भूमि की उर्वरकता का हृास भी नहीं होता है। इसके इस्तेमाल से एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण उपज होती है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग शून्य रहती है।

ज्ञानशाला में राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने किसानों को प्राकृतिक खेती का संकल्प दिलाया। वर्तमान खेती की तुलना में प्रकृतिक खेती न केवल अधिक गुणवत्ता पूर्ण है बल्कि इसमें लागत भी शून्य रहती है। फसलों को बीमारियों से बचने के लिए हमें प्राकृतिक खेती की ओर जाना ही होगा।

 

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